मोदी बानाम राहुल |
नरेंद्र मोदी औ राहुल गांधी फिलहाल दोनों आम चुनाव के आखिरी मुकाबले में आमने-सामने हैं। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को भी अपने इन्हीं नेताओं से उम्मीद है। इससे एक धारणा को बल मिला है। वह यह कि 2014 का आम चुनाव व्यक्ति केंद्रित होगा। इस बार पहले के चुनावों की अपेक्षा पार्टी का महत्व और भी कम होगा। यही वजह है कि जैसे-जैसे 2014 नजदीक आ रहा है, एक तरफ गुजरात के मुख्यमंत्री व भाजपा नेता नरेंद्र मोदी और दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष व युवराज राहुल गांधी दो ध्रुव के रूप में उभर रहे हैं। इन्हें पहले एक दूसरे से और फिर क्षेत्रीय क्षत्रपों से निपटना है। ऐसी परिस्थिति में दोनों नेताओं का विपक्षी पार्टी के निशाने पर होना अस्वाभाविक बात नहीं है। हां, जिन विशेषणों का इस्तेमाल हो रहा है, उसके तह में नई प्रवृत्तियां जरूर छुपी हुई हैं। ‘रैंबो’ और ‘मोगैंबो’ में कई अर्थ छुपे हैं। देश की जनता हॉलीवुड व बॉलीवुड के इन शब्दों को खूब समझती है। वहीं देश की जनता राहुल गांधी की समझ को भी परखना चाहती है, क्योंकि उनकी समझ को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं।
बहरहाल, यह देखने में आ रहा है कि अवसर मिलते ही भाजपा नरेंद्र मोदी को हीरो बनाने के किसी भी मौके को नहीं चूकना चाहती। वहीं विपक्षी दल नरेंद्र मोदी को खलनायक साबित करने की जुगत करते रहते हैं। हाल की बात है। उत्तराखंड तबाही के बीच नेताओं का हवाई सफर शुरू हुआ तो दिल्ली में ‘रैंबो’ और ‘मोगैंबो’ जैसे शब्द चल पड़े। यह अब भी चर्चा में है। कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने चार जुलाई को कहा, “मैं तो हमेशा से कहता रहा हूं कि जिस तरह से कुछ लोग रैंबो बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वह जल्द ही मोगैंबो बन जाएंगे।” हालांकि, उन्होंने नरेंद्र मोदी का सीधे तौर पर नाम नहीं लिया, पर इशारा उन्हीं की तरफ कर रहे थे। आगे उन्होंने कहा, “ रैंबो और मोगैंबो जैसे कैरेक्टर फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं, लेकिन भाजपा के लोग अपने एक नेता को रैंबो प्रोजेक्ट करने में लगे हैं। वे कहते हैं कि वह पहाड़ों में आता है और एक साथ 15,000 लोगों को बचाकर ले जाता है, यह बिल्कुल ही हास्यास्पद है। इससे उस शख्स का ही मजाक उड़ रहा है।” नरेंद्र मोदी पर यह पहले शब्द-वाण नहीं हैं। इससे पहले भी उन्हें कई विशेषणों से नवाजा जा चुका है। कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने तो एक बार मोदी की तुलना रावण से कर डाली थी। केंद्र सरकार के मंत्री जयराम रमेश ने उन्हें भस्मासुर तक कहा था। राजनीतिक विश्लेषकों की राय है, “नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेसी नेताओं के ये तीखे तेवर इसलिए हैं, क्योंकि वे उन्हें अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती मान चुके हैं।”
हालांकि, कांग्रेस पार्टी कहीं से भी इस बात को जाहिर होने देना नहीं चाहती है। वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी एक लेख से यह बात साफ होती है। उन्होंने एक लेख में कहा है, “नरेन्द्र मोदी के 'माइक्रोमैनेजमेंट' को लेकर पिछले दिनों कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहीं कहा कि मोदी कांग्रेस के लिए वैचारिक और प्रबंधकीय चुनौती हैं। ये बात पार्टी को चुभ गई तो फौरन उसने अपने आप को इस वक्तव्य से अलग किया।” वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है, “नरेंद्र मोदी मीडिया की उपज हैं। इस तथ्य पर से पर्दा अगले साल हटेगा।” देश के मझे हुए राजनेता शरद पवार भी कह चुके हैं कि उन्होंने ऐसे कई गुब्बारों को पचकते हुए देखा है। इससे साफ है कि नरेंद्र मोदी के लिए आम चुनाव बेहद चुनौतिपूर्ण है। वे सभी की निगाह में हैं। यही स्थिति कांग्रेस के युवराज की भी है। उनपर कई टिप्पणियां आ चुकी हैं। हाल फिलहाल समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता एवं कैबिनेट मंत्री आजम खान ने राहुल गांधी को लंगूर तक कह डाला। कुछ मिलाकर देखा जाए तो दोनों नेता अन्य नेताओं के मुकाबले अधिक निशाने पर हैं।
इस बीच हर मोड़ पर नरेंद्र मोदी अपना असर छोड़ने में कामयाब हो रहे हैं, पर राहुल गांधी इसमें सफल नहीं हो पा रहे हैं। ‘निर्भया अभियान’ से लेकर उत्तराखंड आपदा तक राहुल गांधी जनता के बीच प्रभाव छोड़ने में असफल रहे। एक तरफ नरेंद्र मोदी को उनके विरोधी भी मजबूत प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। स्वभाव से सख्त समझते हैं। वहीं राहुल गांधी को अपने बारे में कहना पड़ रहा है कि वे सख्त हैं। बीते दिनों दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के मुख्यालय में उन्होंने कहा था, “मैं जैसा दिखता हूं, वैसा हूं नहीं। मेरी मां रहमदिल है लेकिन मैं दादी (इंदिरा गांधी) की तरह सख्त हूं। जिसके पीछे पड़ता हूं, उसे छोड़ता नहीं।” इसके बावजूद उनपर कोई यकीन करने को तैयार नहीं है। युवा राजनीतिक कार्यकर्ता विकास आनंद ने कहा कि राहुल गांधी के इस वाक्य से साफ है कि उन्हें भारतीय राजनीति में अभी और परिपक्व होना है। इस बात को कांग्रेस पार्टी भी समझने लगी है। संभवत: यही वजह है कि कांग्रेस के हालिया संगठनात्मक फेर-बदल में लोकसभा की 80 सीटों वाली उत्तर प्रदेश की डोर राहुल टीम से हटकर सोनिया गांधी की टीम के हाथों आ गई है। गुजरात के मधुसूदन मिस्त्री सूबे के प्रभारी बनाए गए हैं। वे अहमद पटेल के करीबी माने जाते हैं। कांग्रेस में अहमद पटेल की हैसियत किसी से छुपी नहीं है।
राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखने वाले लिख-बोल रहे है, “जिस निर्णायक स्थिति में नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी में हैं, कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद उस अंदाज में राहुल गांधी स्वयं को अबतक पेश नहीं कर पाए हैं। हालांकि, उनकी सक्रियता दिनों-दिन बढ़ी है, पर अधिक जगहों पर असफलता ही उनके हाथ आई है। इसके बावजूद कांग्रेस के पास जो एक चेहरा है, वह राहुल गांधी का ही है। यह कांग्रेस पार्टी की अपनी समस्या है।” दूसरी तरफ पूरी संभावना है कि नरेंद्र मोदी से यदि हल्की चूक भी होती है तो उनकी समस्या पार्टी के अंदर और बाहर बढ़ सकती है। उन्होंने अपने विश्वासी अमित शाह को उत्तर प्रदेश की कमान दिलवाई है। यह वह सूबा है जो भाजपा को 180 से आगे का आंकड़ा छूने में मदद पहुंचा सकता है। पिछले आम चुनाव में भाजपा को यहां से महज 10 सीटें ही मिल पाई थीं। इसके वोट प्रतिशत में भी 4.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजे भी पार्टी के लिए निराशाजनक रहे हैं। अब मोदी के सामने चुनौती है कि वह मतदाताओं को इस बात के लिए तैयार करें कि आम चुनावों में वे स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ राष्ट्रीय मुद्दों को भी ध्यान में रखें।
राजनीतिक जानकार के मुताबिक, “विकास का गुजरात मॉडल और अन्य राज्यों में उसकी संभावना आगामी आम चुनाव का मुख्य मुद्दा बन सकता है।” वरिष्ठ पत्रकार मार्क टुली ने भी कहा है कि मोदी को मतदाताओं को इस बात के लिए मनाना होगा कि आम चुनाव का सरोकार राष्ट्रीय मुद्दों से है और कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता उनकी जिंदगी में बदलाव लाने के लिए सक्षम है। इसमें एक संभावना बनती है। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी खुद को 'विकास पुरुष' के तौर पर पेश कर रहे हैं। वैसे तो युवाओं का एक बड़ा वर्ग इस बार मतदाता सूची में शामिल हो रहा है, लेकिन कांग्रेस के युवराज उसे प्रभावित करने में लगातार असफल हो रहे हैं। मोदी अपने प्रचार तंत्र से इन युवाओं तक पहुंचने में सफल हो रहे है। ‘सोशल मीडिया’ पर उनको फॉलो करने वालों की संख्या काफी ज्यादा है। राहुल गांधी यहां उसे पीछे हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि इन युवाओं को कौन अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल होता है। नरेंद्र मोदी के सेनापति एक तरफ भव्य राम मंदिर बनाने की बात कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस अवसर के इंतजार में है। वह चाहेगी कि विकास और भ्रष्टाचार में से कोई मुद्दा न बने। अगर यह मुद्दा बनता है तो राहुल गांधी के लिए जगह-जगह जवाब देना मुश्किल होगा। सियासत के इन उबड़-खाबड़ रास्तों पर संतुलन साधना इन दोनों नेताओं के लिए आसान नहीं है। वैसे मोदी की टीम इस बात को लेकर चवन्नी भर निश्चिंत हो सकती है कि राहुल उनके मुकाबले उन्नीस ठहरते हैं। पर आगे चुनौतियां कम नहीं हैं।
सुमित गुप्ता